डेरिवेटिव क्या है?
डेरिवेटिव का मीनिंग हिन्दी मे व्युत्पन्न या व्युत्पादि होता है, कोई वस्तु जिसका मूल्य किसी अन्य वस्तु द्वारा व्युत्पन्न होता है उसे डेरिवेटिव कहते है।
उदाहरण : जैसे एक कागज के टुकड़े का कुछ खास मूल्य नहीं होता है लेकिन वही कागज के टुकड़े पे अगर भारतीय रिजर्व बैंक लिखा हो और गवर्नर की हस्ताक्षर होने पर उसका मूल्य ज्यादा हो जाएगा, उस नोट का जो मूल्य है वो व्युत्पन्न गवर्नर के कारण हो रहा है।
डेरिवेटिव का प्रयोग भविष्य मे होने वाली हानी को कम करने और ट्रेडिंग करने मे होता है आईए डेरिवेटिव ट्रेडिंग को विस्तृत रूप समझते है।
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डेरिवेटिव कितने प्रकार के होते है?
डेरिवेटिव चार प्रकार के होते है।
- फॉरवर्ड
- फ्यूचर
- ऑप्शन
- स्वैप
फॉरवर्ड, फ्यूचर, ऑप्शन और स्वैप एक प्रकार का अनुबंध (contract) होता है जिसे हम भविष्य मे होने वाले हानी से बचने के लिए और ट्रेडिंग करने के लिए करते है जिसे हम डेरिवेटिव ट्रेडिंग भी कहते है।
फॉरवर्ड कान्ट्रैक्ट क्या होता है?
फॉरवर्ड अनुबंध (contract) को हम हानी से बचने लिए करते है इसमे ट्रेडिंग नहीं होती है क्युकी इस अनुबंध (contract) का प्रयोग सिर्फ दो लोगों के बीच भौतिक रूप से होती है, आईए इसे उदाहरण से समझते है।
उदाहरण : रवि नाम एक किसान है जो आलू की खेती करता है और अपना आलू किसी चिप्स बनाने वाली x नाम की कंपनी को बेचता है और रवि को लगता है आलू इस बार 20 रुपये प्रति किलो से सस्ता होकर 15 रुपये हो सकता है और वही पर x नाम की कंपनी को लगता है की इस बार बारिश होने की वजह से आलू की सप्लाइ कम और डिमांड ज्यादा होने की वजह से आलू 20 रुपये प्रति किलो से महंगा होकर 25 रुपये हो सकता है।
अब दोनों को ही 20 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदना और बेचना है तो दोनों एक 1 या 2 वर्ष का अपने इच्छा अनुसार कान्ट्रैक्ट साइन करते है की आलू का दाम भविष्य मे चाहे कम हो या ज्यादा हो हम इसी दाम पे खरीदेंगे और बेचेंगे बस इसी को फॉरवर्ड कान्ट्रैक्ट कहते है।
लेकिन ये कान्ट्रैक्ट दो लोगों के बीच होता है अगर दोनों पार्टियों मे से कोई भी मुकर जाए तो बहोत समस्या होगी इस लिए इसे रिस्की भी माना जाता है इसी समस्या को देखते हुए फ्यूचर कान्ट्रैक्ट को बनाया गया।
फ्यूचर कान्ट्रैक्ट क्या होता है ?
फ्यूचर कान्ट्रैक्ट बिल्कुल फॉरवर्ड कान्ट्रैक्ट की तरह होता है बस फ्यूचर और फॉरवर्ड मे ये अंतर है की फॉरवर्ड मे कोई थर्ड पार्टी नहीं होती है लेकिन फ्यूचर मे थर्ड पार्टी एक एक्सचेंज होता है जिसकी वजह से इसमे कोई मुकर नहीं सकता है और फॉरवर्ड मे ट्रेडिंग नहीं होती है लेकिन फ्यूचर मे आप ट्रेड भी कर सकते है।
फ्यूचर कान्ट्रैक्ट 3 फिक्स टाइम पीरीअड मे होता है करंट मन्थ पीरीअड, नियर मन्थ पीरीअड और फॉर मन्थ पीरीअड और हर फ्यूचर कान्ट्रैक्ट जिस मन्थ का होता है उस मन्थ के लास्ट थर्सडे को खतम हो जाता है।
उदाहरण : मान लीजिए रवि नाम का किसान हर साल 50 किलो गेहू बेचता है, वर्तमान मे गेहू की कीमत 10 रुपये प्रति किलो है और रवि को लगता है की अगले महीने मे गेहू की कीमत घटकर 5 रुपये हो जाएगी और मुझे बहोत हानी होगी तो वो National commodity exchange पे अपने हानी को बचाने के लिए 50 किलो गेहू के हिसाब से फ्यूचर कान्ट्रैक्ट बेच देता है और वही पर किसी x नाम की कंपनी जो ब्रेड बनती है उसे लगता है की गेहू 10 रुपये से बढ़कर 15 रुपये हो जाएगी तो x नाम की कंपनी उस फ्यूचर कान्ट्रैक्ट को बेच देती है।
अब कुछ दिन बाद गेहू का दाम सच मे 10 रुपये से घटकर 5 रुपये हो जाती है तो इसमे रवि का जो नुकसान होने वाला था वो बच जाएगा क्युकी रवि ने गेहू के फ्यूचर को 10 रुपये की कीमत पे बेच चुका था अब वो गेहू को मार्केट मे भले ही 5 रुपये किलो बेचेगा लेकिन गेहू के फ्यूचर को वो 10 रुपये मे बेच था तो अब गेहू का दाम 5 रुपये है इस हिसाब से उसने बेचा है महंगे मे लेकिन खरीदे सस्ते मे तो उसका हर एक फ्यूचर पे 5 रुपये का प्रॉफ़िट होगा, फ्यूचर मे इसी तरह रिस्क को कम किया जाता है लेकिन इसमे कुछ लोग पैसे कमाने के लिए ट्रेडिंग भी करते है।
ऑप्शन कान्ट्रैक्ट क्या होता है?
ट्रेडिंग की दुनिया मे ट्रेडर्स का अगर डेरिवेटिव मे सबसे ज्यादा इंटरेस्ट है तो वो है ऑप्शन ट्रेडिंग इसमे हानी होने की एक सीमा होती है और प्रॉफ़िट की कोई सीमा नहीं होती है लेकिन ऑप्शन ट्रेडिंग को लेकर लोग काफी कन्फ्यूज़ रहते है इसलिए ऑप्शन कान्ट्रैक्ट को हम एक उदाहरण से समझेंगे।
उदाहरण : श्याम नाम का कोई व्यक्ति है जिसके पास एक बीघा की जमीन है जिसकी कीमत 1 लाख है और श्याम उस जमीन को बेचना चाहता है और वही पर विवेक नाम का कोई व्यक्ति है उसको खबर मिली है की उस जमीन के बगल मे अगले महीने मे एयरपोर्ट बनने वाला तो विवेक को लगता है की अगर एयरपोर्ट बन जाएगा तो उसकी कीमत बढ़ जाएगी।
विवेक सोचता है इस जमीन को खरीद लेता हु लेकिन उसको डर भी है की कही ये खबर गलत साबित हुई या किसी भी कारण वहाँ एयरपोर्ट नहीं बना तो मुझे कोई फायदा नहीं होगा तो इस लिए विवेक श्याम के पास जाता है और उससे एक कान्ट्रैक्ट साइन करवाता की इस जमीन की कीमत 1 लाख है और मै आपको इस जमीन को खरीदने के लिए सिर्फ 10 हजार रुपये दूंगा (जिसे प्रीमियम कहा जाता है) और जमीन को अगले महीने के 30 तारीख को मै आपको 90 हजार पूरा देके उस जमीन को ले लूँगा यदि मै उस जमीन को अगले महीने के 30 तारीख को नहीं लेता हु तो 10 हजार का प्रीमियम भी आपका हो जाएगा और वो जमीन आप किसी और को बेच सकते है लेकिन अगर वो जमीन मै 30 तारीख को लेता हु तो उस समय जमीन की कीमत चाहे जितनी भी हो मै आपको सिर्फ 90 हजार देके ले लूँगा।
अब अगर दोनों कान्ट्रैक्ट से समहत होके साइन कर देते है तो श्याम अगले महीने के 30 तारीख तक वो जमीन किसी दूसरे को नहीं बेच सकता अब अगर वहाँ एयरपोर्ट बन गया तो विवेक वो जमीन 90 हजार देके खरीद लेगा और उसे बहोत फायदा होगा लेकिन अगर वहाँ एयरपोर्ट नहीं बना तो वह उस जमीन को नहीं खरीदेगा और उसे सिर्फ 10 हजार का नुकसान होगा।
ऑप्शन ट्रेडिंग की शुरुआत सबसे पहले अग्रीकल्चर ट्रेडर्स ने की थी लेकिन स्टॉक एक्सचेंज या शेयर मार्केट मे थोड़ा स अलग होता है अगर आप ऑप्शन ट्रेडिंग करना चाहते है तो इसके बारे मे और जानकारी लेले तभी करे नहीं तो आपको नुकसान भी हो सकता है।
स्वैप कान्ट्रैक्ट क्या होता है?
स्वैप कान्ट्रैक्ट का प्रयोग लोन लेने या देने मे होता है, इसका प्रयोग ज्यादातर बड़े बैंक या बड़ी कम्पनिया करती है इसकी ट्रेडिंग फ्यूचर और ऑप्शन की तरह किसी एक्सचेंज पे नहीं होती है, स्वैप कान्ट्रैक्ट 5 प्रकार के होते है
- इंटरेस्ट रेट स्वैप
- करन्सी स्वैप
- एक्विटी स्वैप
- कोमोडिटी स्वैप
- क्रेडिट डिफ़ॉल्ट स्वैप
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